ग्रामीण विकास में विपणन तन्त्रों की भूमिका: चुनौतियाॅ एवं सम्भावनाएं

Authors

  • राजीव सिंह चन्देल ACME, Digittek, Solution (P) Ltd, Lucknow (UP), India. Author

Keywords:

.ग्रामीण अधिवास, विपणन केन्द्र, , नवाचार, जलवायुविक, आवर्ती विपणन केन्द्र, परिसंचरण मार्ग, भूवैन्यासिक, आवर्तिता, बाजारोन्मुख, उपभोक्ता, मुद्रादायिनी फसलें, विचौलिया, अनु ंगीय व्यवसाय, श्रम क्ति, कृ ुत्पाद

Abstract


विपणन केन्द्र का तात्पर्य ऐसे स्थान से है जहॉ वस्तुओं एवं सेवाओ ं का क्रय.विक्रय होता है। प्रायः विपणन केन्द्रो ं की अवस्थितिगत एं ही विपणन की आवृत्ति, कार्य की गहनता या विरलता का बोध कराती है। इसलिए कृषि पर आधारित ग्रामीण अर्थव्यवस्था वाले क्षेत्रों के लिए व्यवस्थित एवं विकसित विपणन तन्त्र का होना आवष्यक है। अव्यवस्थित और कमजोर विपणन तन्त्र, किसी भी ऐसे प्रदेष में जहॉ पहले से ही भौगोलिक विषमताएं विद्यमान हैं, आर्थिक उत्पदों को अल्प समूहों के हाथों में केन्द्रित कर देता है। परिणाम स्वरूप धीरे-धीरे संसाधनों पर उसी समूह का आधिपत्य हो जाता है जो अन्ततः सामाजिक व आर्थिक विषमता को और अधिक बढ़ावा देते हैं। ऐसी स्थिति में सम्पूर्ण प्रद में विपणन का विकसित तन्त्र ही प्राथमिक उत्पादों के समुचित वितरण में सहायक हो सकते हैं जिससे विकास के अवसर समान रूप से सम्पूर्ण क्षेत्र की जनसंख्या को प्राप्त हो सकता है क्योकि विपणन केन्द्र केवल विनिमय केन्द्र न होकर नवीन विचारों एवं नवाचारों के प्रसार केन्द्र भी होते है। इसलिए ग्रामीण अर्थतंत्र के विकास स्तर एवं सम्भावनाओं का अनुमान लगाने के लिए विपणन तन्त्र की भूमिका का अध्ययन एवं करना आवष्यक ही नहीं अपरिहार्य भी है। प्रस्तुत शोध्रपत्र का मूल उद्देष्य गंगा-गोमती दोआब में स्थित जनपद रायबरेली, उत्तर प्रदेेश के ग्रामीण विकास में विपणन तन्त्र की भूमिका का अध्ययन एवं करना है। अध्ययन क्षेत्र में कुल विपणन केन्द्रों की संख्या 300 है। जिसमें से 9 स्थाई दैनिक विपणन केन्द्र है जबकि 291 आवर्ती विपणन केन्द्र हैं। इन आवर्ती विपणन केन्द्रो ं में कहीं साप्ताहिक, तो कहीं द्वैसाप्ताहिक एवं त्रैसाप्ताहिक बाजार लगते हैं। अध्ययन क्षेत्र के विपणन केन्द्रो ं की विपणन संरचना वं आवर्तिता के सर्वे क्षण एवं विष्लेषण से यह स्पष्ट होता है कि क्षैतिज अन्तर्क्रियात्मक सम्बन्ध इन विपणन केन्द्रो ं का महत्वपूर्ण कार्य है। अध्ययन क्षेत्र के ग्रामीण विकास प्रतिरूप एवं समन्वित सम्भाव्यता प्रतिरूप का अवलोकन करे तो स्पष्ट होता है कि जनपद के जिन भागों में समाजार्थिक सम्भाव्यता का समन्वित प्रतिरूप अधिक है अर्थात् जिन क्षेत्रों में विपणन तन्त्र अधिक विकसित है, प्रायः उन्हीं क्षेत्रो ं में ग्रामीण विकास का स्तर भी उच्च है। इस तरह के प्रतिरूप रायबरेली नगर के चतुर्दिक परिक्षेत्र में तो देखा जा सकता है। जबकि जनपद रायबरेली के दक्षिण प भाग (डलमऊ व लालगंज तहसील) अपेक्षाकृत अधिक पिछड़ा है क्योंकि इस पूरे परिक्षेत्र में विपणन केन्द्रों का वितरण विरल है। इसलिए विपणन केन्द्रों के सन्तुलित विकास एवं स्तरोन्यन हेतु सुदृढ़ परिवहन व संचार सुविधाओं के समुचित विकास पर विषेष बल देने के साथ ही साथ उदार वित्तीय सुविधाएं एवं व्यापार नीतियों को समयानुकूल बनाना अति आवष्यक है।

Published

2010-06-16